
एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह में द्वारिका नगरी के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की जयंती को बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। यह आयोजन विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ. सुधा मलैया, प्रति कुलाधिपति श्रीमती पूजा मलैया एवं श्रीमती रति मलैया के कुशल नेतृत्व, कुलगुरू प्रोफ़ेसर डॉ. पवन कुमार जैन, कुलसचिव डॉ. प्रफुल्ल शर्मा के कुशल निर्देशन में किया गया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो.जैन , मुख्य परीक्षा नियंत्रक डॉ. प्रकाश खम्परिया, अधिष्ठाता अकादमिक डॉ. शमा खानम, छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ. शैलेन्द्र जैन, कार्यक्रम के सूत्रधार आईटीआई प्राचार्य आनंद भल्ला के साथ ही समस्त संकाय के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापकों, विद्यार्थियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान विश्वकर्मा के चरणों में दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इसके बाद डॉ. हृदय नारायण तिवारी द्वारा षोडशोपचार विधि से भगवान विश्वकर्मा का विधिवत पूजन किया गया। पूजनोपरांत सामूहिक हवन कर संपूर्ण राष्ट्र के मंगल की कामना की गई।
भगवान विश्वकर्मा का जन्म ब्रह्मा के पुत्र वास्तुदेव और उनकी पत्नी अंगिरसी से हुआ था। यानी विश्वकर्मा के पिता वास्तु के ज्ञाता थे और माँ शरीर विज्ञान की ज्ञाता। माता-पिता दोनों के गुण आए इसलिए विश्वकर्मा निर्माता बने और वैज्ञानिक भी बने। भारतीय वांग्मय में बताया गया है कि विश्वकर्मा स्वर्ग लोक, इंद्रपुरी, अमरावती, पुष्पक विमान, द्वारका नगरी, इंद्र का वज्र, शिवजी का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और कुबेर का पुष्पक रथ बनाने वाले रचनाकार थे। पांडवों के इंद्रप्रस्थ की रचना भी राक्षस-वास्तुकार मायासुर ने विश्वकर्मा की सहायता से की थी। निश्चित रूप से इन अद्भुत निर्माण और आयुध शस्त्रों की इंजीनियरिंग की परिकल्पना भगवान विश्वकर्मा ने की, लेकिन उस परिकल्पना को साकार उन मजदूरों ने किया जिन्होंने विश्वकर्मा के साथ मिलकर यह सारे निर्माण किए। उन कुशल और अकुशल मजदूरों ने विश्वकर्मा की परिकल्पना को धरातल पर उतारा। इसलिए जितना महत्व भगवान विश्वकर्मा का है उतना ही महत्व उन मजदूरों का भी है और विश्वकर्मा जयंती मनाने का सबसे प्रमुख कारण भी यही है कि भगवान श्री कृष्ण हों या इंद्र या फिर स्वयं आदि देव शंकर, इन सभी देवों ने परम शक्तिशाली होते हुए भी विश्वकर्मा की सहायता से निर्माण किया। जिससे श्रमिक वर्ग को महत्व मिला और उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसी भावना साकार करते हुए यह आयोजन प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी बड़े उत्साह पूर्वक विश्वविद्यालय के समस्त कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों की उपस्थिति में किया गया।














